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समय की शुरुआत से
इस अध्याय में इस बात की चर्चा की गई है कि मानव कब और किस रूप में सर्वप्रथम अस्तित्व में आया। ऐसा समझा जाता है कि कदाचित् 56 लाख वर्ष पहले पृथ्वी पर ऐस प्राणियों का प्रादुर्भाव हुआ जिन्हें हम मानव कह सकते हैं। इसके बाद आदि मानव के कई रूप बदले और कालांतर में लुप्त हो गए। आज हम जिस रूप में मानव को देखते हैं (जिन्हें हमने आगे 'आधुनिक मानव' कहा), वैसे लोग 1,60,000 साल पहले पैदा हुए थे। लगभग 8000 ई. पू. तक मानव इतिहास के इस लंबे अरसे के दौरान लोग दूसरों द्वारा मारे गए या अपनी मौत खुद मरे प्राणियों के शरीर में से मांस निकालकर, जानवरों का शिकार करके अथवा पेड़-पौधों से कंदमूल फल और बीज आदि बटोरकर अपना पेट भरते थे। धीरे-धीरे उन्होंने पत्थरों से औज़ार बनाना और आपस में बातचीत करना सीख लिया।
'जीवाश्म' (Fossil) शब्द एक अत्यंत पुराने पौधे, जानवर या मानव के उन अवशेषों या छापों के लिए प्रयुक्त किया जाता है जो एक पत्थर के रूप में बदलकर अक्सर किसी
चट्टान में समा जाते हैं और
हालाँकि आगे चलकर आदमी ने भोजन जुटाने के कई और तरीके अपना लिए, पर शिकार और संग्रह करने यानी इधर-उधर से खाने की चीजें तलाशने और बटोरने का तरीका भी चलता रहा। आज भी दुनिया के कुछ भागों में ऐसे शिकारी-संग्राहक समाज (Hunter-Gatherer Societies) हैं जो शिकार और संग्रहण से अपने भोजन की व्यवस्था करते हैं। इसलिए हम यह सोचने पर मजबूर होते हैं कि आज के इन शिकारी-संग्राहक लोगों की जीवन-शैली का अध्ययन करने से हमें अतीत के बारे में कुछ जानकारी मिल सकती है या नहीं।
आज हमें आदि मानव के इतिहास की जानकारी मानव के जीवाश्मों (Fossils), पत्थर के औज़ारों और गुफाओं की चित्रकारियों की खोजों से मिलती है। इनमें से प्रत्येक खोज का अपना एक इतिहास है। अक्सर हो, जब ऐसी खोजें सर्वप्रथम की गई, अधिकांश • विद्वानों ने यह मानने से इनकार कर दिया कि ये जीवाश्म प्रारंभिक मानवों के हैं। उन्हें आदिकालीन मानव द्वारा पत्थर के औज़ार या रंग-रोगन बनाए जाने की योग्यता के बारे में भी शक था। एक अरसे के बाद ही इन जीवाश्मों, औज़ारों और चित्रकारियों के सच्चे महत्त्व को स्वीकार किया गया।
फिर लाखों सालों तक उसी रूप में पड़े रहते हैं।
'प्रजाति' या स्पीशीज़
(Species) जीवों का एक ऐसा समूह होता है जिसके नर और मादा मिलकर बच्चे पैदा कर सकते हैं और उनके बच्चे भी आगे प्रजनन करने यानी संतान उत्पन्न करने में समर्थ होते हैं। एक प्रजाति विशेष के सदस्य दूसरी प्रजाति के सदस्यों से संभोग करके बच्चे पैदा नहीं कर सकते।
मानव का विकास क्रमिक रूप से हुआ, इस बात का साक्ष्य हमें मानव की उन प्रजातियों (species) के जीवाश्मों से मिलता है जो अब लुप्त हो चुकी हैं। उनकी कुछ विशेषताओं या शारीरिक लक्षणों के आधार पर मानव को भिन्न-भिन्न प्रजातियों में बाँटा गया है। जीवाश्मों की तिथि का निर्धारण प्रत्यक्ष रासायनिक विश्लेषण द्वारा अथवा उन परतों या तलछटों के काल का परोक्ष रूप से निर्धारण करके किया जाता है जिनमें वे दबे हुए पाए जाते हैं। जब एक बार जीवाश्मों की तिथि यानी काल का पता चल जाता है तब मानव विकास का क्रम निर्धारित करना कठिन नहीं रहता।
लगभग 200 वर्ष पहले सर्वप्रथम जब ऐसी खोज की गई थीं, तो अनेक विद्वान यह मानने को तैयार नहीं थे कि खुदाई में मिले जीवाश्म और पत्थर के औज़ार तथा चित्रकारियों जैसी अन्य चीजें वास्तव में मनुष्य के आदिकालीन रूपों से संबंध रखती थीं। विद्वानों की यह हिचकिचाहट आमतौर पर बाईबल के ओल्ड टेस्टामेंट में अभिव्यक्त इस धारणा पर आधारित थी कि परमेश्वर ने सृष्टि की रचना करते समय अन्य प्राणियों के साथ-साथ मनुष्य को भी बनाया।
विद्वानों की ऐसी हिचकिचाहट का एक उदाहरण देखिए अगस्त 1856 में, जब मजदूर (जर्मनी के डसेलडॉर्फ नगर के पास) निअंडर घाटी (मानचित्र 2 पृष्ठ 18) में चूने के पत्थरों की खान की खुदाई कर रहे थे तो उन्हें एक खोपड़ी और अस्थिपंजर के कुछ टुकड़े मिले। ये चीजें एक स्थानीय स्कूली शिक्षक कार्ल फुलरौट समय की शुरुआत से 9
(Carl Fuhirott) को सौंप दी गई जो एक प्राकृतिक इतिहास में जाँच के बाद उन्होंने पाया कि वह खोपड़ी आधुनिक मानक की नहीं थी। फिर उन्होंने प्लास्टर से उस खोपड़ी का ढाँचा बनाया और उसे बने विश्वविद्यालय के शरीररचना-विज्ञान के एक प्रोफ़ेस हरमन शाफतौसेन (Herman Schaaffhausen) के पास भेज दिया। अगले ही वर्ष उन्होंने मिलकर एक शोधपत्र प्रकाशित किया जिसमें उन्होंने दावा किया कि यह खोपड़ी एक ऐसे मानव रूप की है जो अब अस्तित्व में नहीं है। उस समय तो विद्वान
जीवाश्म प्राप्त करना एक कठिन प्रक्रिया होती है। पाई गई चीजों की सही जगह जानना उनके काल-निर्धारण के लिए बहुत जरूरी होता है।
ऊपर चित्र में दिखाया गया है कि जीवाश्म के एक टुकड़े को उसे चारों ओर से घेरे पत्थर (चूना पत्थर) से कैसे अलग किया गया है। आप देख सकते हैं कि इस कार्य में कितने कौशल और धैर्य की आवश्यकता होती है।
क्रियाकलाप 1
अधिकांश धर्मो में मानव प्राणियों की रचना के बारे में अनेक कहानियों कहो गई है, पर अक्सर वे वैज्ञानिक खोजों से मेल नहीं खात ऐसी कुछ धार्मिक कथाओं के बारे में पता लगाइए और उनकी तुलना इस अध्याय में चति मानव के क्रमिक विकास के इतिहास से कीजिए आप उनके बीच क्या समानताएँ और अंतर देखते हैं?
ऊपर चित्र में उन उपकरणों को दिखाया गया है जो मिली वस्तुओं के स्थान को जानने के लिए प्रयोग किए गए हैं। पुरातत्वविद के बाई और जो वर्गाकार चौखटा दिखाया गया है वह एक ऐसी जाली (ग्रिड) है जो 10 से.मी. के वर्गों में बेटी है। इसे मिली वस्तु के स्थान पर रखने से उस वस्तु को तिज स्थिति का पता चलता है। दाहिनी और जो त्रिभुजाकार उपकरण है वह वस्तु को ऊर्ध्वाधर स्थिति दर्शाने के लिए काम में लाया गया है।
ने उनके इस दावे को स्वीकार नहीं किया और यह घोषित कर दिया कि यह खोपड़ी एक ऐसे व्यक्ति को है जो बहुत बाद के समय में हुआ था।
मनुष्य के क्रमिक विकास के अध्ययन में एक युगांतरकारी घटना 24 नवम्बर 1859 को तब पटी, जब मनुष्य की उत्पत्ति के विषय में चार्ल्स डार्विन की पुस्तक ऑन दि ओरिजिन ऑफ स्पोशी (On the origin of Species) प्रकाशित हुई। दस पुस्तक के प्रथम संस्करण को सभी 1 250 अंतियाँ, उसके प्रकाशन के दिन ही हाथों-हाथ बिक गई। डार्विन ने इस पुस्तक में दलील दी थी कि मानव बहुत समय पहले जानवरों से ही क्रमिक रूप से विकसित होकर अपने वर्तमान रूप में आया है।
निअंडरथल मानव की खोपड़ी कुछ लोगों ने इस खोपड़ी की पुरातनता को स्वीकार नहीं किया और यह बताया कि यह खोपड़ी तो किसी 'मूर्ख' या 'बुद्धि' प्राणी की है।
10 विश्व इतिहास के कुछ विषय
मानव के क्रमिक विकास की कहानी (क) आधुनिक मानव के पूर्वज
इन चार खोपड़ियों को देखिए। खोपड़ी के एक वानर की है।
खोपड़ी-ख आस्ट्रेलोपिथिकस नामक प्रजाति की है (नीचे देखिए) खोपड़ी-ग, होमो एरेक्टस
(सीधे खड़े होकर चलने वाले आदमी) की है। खोपड़ी घ होमोसेपियंस (चिंतनशील/ प्राज्ञ मानव) नामक प्रजाति की है आज के मानव इसी प्रजाति के हैं। इन खोपड़ियों में आप अधिक से अधिक जितनी समानताएँ और अंतर देखते हैं। उनकी सूची बनाइये इस हेतु आप सबसे पहले इन खोपड़ियों का मस्तिष्क खोलों, जबड़ों और दाँतों को भलीभाँति देखिए ।
चित्र में दिखाई गई खोपड़ियों की रचना में आप जो भी अंतर पाएंगे उनका कारण वे परिवर्तन हैं जो मानव के क्रमिक विकास के फलस्वरूप उत्पन्न हुए हैं। मानव के क्रमिक विकास की कहानी बहुत ज़्यादा लंबी और कुछ जटिल या उलझी हुई भी है। इस संबंध में अनेक अनुत्तरित प्रश्न भी उठे हैं और नए-नए प्राप्त तथ्यों और सामग्रियों से अक्सर पुरानी समझ तथा जानकारी में परिवर्तन संशोधन करने पड़े हैं। आइए कुछ घटनाक्रमों तथा परिवर्तनों और उनके परिणामों पर कुछ अधिक गहराई से चर्चा करें।
मानव के विकास के क्रम को 360 से 240 लाख वर्ष पहले तक खोजा जा सकता है। कभी-कभी हमारे लिए इतने लंबे समय के विस्तार की कल्पना करना बहुत कठिन हो जाता है। यदि आप अपनी पुस्तक के एक पृष्ठ को 10,000 वर्षों के बराबर मानें तो 10 पृष्ठ एक लाख वर्षों के बराबर और एक सौ पृष्ठ 10 लाख वर्षों के बराबर होंगे। इस प्रकार 360 लाख वर्षों के बारे में सोचने के लिए आपको 3600 पृष्ठों की पुस्तक की कल्पना करनी होगी! यह वह समय था जब एशिया तथा अफ्रीका में स्तनपायी प्राणियों की प्राइमेट (Primates) नामक श्रेणी का उद्भव हुआ था। उसके बाद लगभग 240 लाख साल पहले 'प्राइमेट' श्रेणी में एक उपसमूह उत्पन्न हुआ जिसे होमिनॉइड (Hominoids) कहते हैं। इस उपसमूह में 'वानर' यानी 'एप' (Ape) शामिल थे। और फिर बहुत समय बाद लगभग 56 लाख वर्ष पहले, हमें पहले होमिनिड (Homimids) प्राणियों के अस्तित्व का साक्ष्य मिलता है।
'प्राइमेट' स्तनपायी प्राणियों के एक अधिक बड़े समूह के अंतर्गत एक उपसमूह है। इस प्राइमेट उपसमूह में वानर, लंगूर और मानव शामिल हैं। उनके शरीर पर बाल होते हैं। बच्चा पैदा होने से पहले अपेक्षाकृत लंबे समय तक माता के गर्भ में पलता है। माताओं में बच्चे को दूध पिलाने के लिए ग्रंथियाँ होती हैं. प्राइमेट प्राणियों के दाँत भिन्न-भिन्न किस्मों के
होते हैं।
'होमिनिड' वर्ग होमिनॉइड उपसमूह से विकसित हुए। उनमें अनेक समानताएँ पाई जाती हैं। लेकिन कुछ बड़े अंतर भी हैं। होमिनॉइडों का मस्तिष्क होमिनिडों की तुलना में छोटा होता था। वे चौपाए थे, यानी चारों पैरों के बल चलते थे, लेकिन उनके शरीर का अगला हिस्सा और अगले दोनों पैर लचकदार होते थे इसके विपरीत होमिनिड सीधे खड़े होकर पिछले दो पैरों के बल चलते थे। उनके हाथ विशेष किस्म के होते थे जिनकी सहायता से वे औज़ार बना सकते थे और उनका इस्तेमाल कर सकते थे। हम अगले अनुभाग में उनके द्वारा बनाए गए औजारों और उनकी विशेषताओं के बारे में अधिक बारीकी से चर्चा करेंगे।
दो प्रकार के साक्ष्य से यह पता चलता है कि होमिनिडों का उद्भव अफ्रीका में हुआ था। पहला तो यह कि अफ्रीकी वानरों (एप) का समूह होमिनिडों से बहुत गहराई से जुड़ा है। दूसरा, सबसे प्राचीन होमिनिड जीवाश्म, जो आस्ट्रेलोपिथिकस वंश (Genus) के हैं, पूर्वी अफ्रीका में पाए गए हैं और उनका समय लगभग 56 लाख वर्ष पहले का माना जाता है। इसके विपरीत, अफ्रीका से बाहर पाए गए जीवाश्म 18 लाख वर्ष से अधिक पुराने नहीं हैं।
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