तीन वर्ग
हमने देखा है कि नौवीं सदी तक कैसे एशिया और यूरोप के अधिकांश भागों में विशाल साम्राज्यों का विकास और विस्तार हुआ। इन साम्राज्यों में से कुछ पायावरों के थे, कुछ विकसित शहरों और उन शहरों के व्यापारी तंत्रों पर आधारित थे। मकदूनिया, रोम, अरब साम्राज्य, मंगोल साम्राज्य और उनसे पूर्व आने वाले साम्राज्यों (मिस्र, असीरिया, चीनी और मीर्य) में यह अंतर था कि यहाँ दिए गए पहले चार साम्राज्य विस्तृत क्षेत्रों में फैले हुए थे और महाद्वीपीय एवं पारमहाद्वीपीय स्वरूप के थे। ह
जो कुछ हुआ उसमें विभिन्न सांस्कृतिक टकरावों की भूमिका निर्णायक थी। साम्राज्यों का उदय प्रायः अचानक होता था परन्तु वे हमेशा उन बदलावों के परिणाम थे जो साम्राज्य निर्माण की दिशा में लंबे समय से उन मूल क्षेत्रों में निहित थे जहाँ से ये साम्राज्य फैलने लगे।
विश्व इतिहास में परंपराएँ विभिन्न तरीका से बदल सकती हैं। पश्चिमी यूरोप में नौवों से सत्रहवीं सदी के मध्य ऐसा बहुत कुछ धीरे-धीरे विकसित हुआ जिसे हम 'आधुनिक समय' के साथ जोड़कर देखते हैं। इन कारकों में धार्मिक विश्वासों पर आधारित होने की अपेक्षा प्रयोगों पर आधारित वैज्ञानिक ज्ञान का विकास, लोक सेवाओं के निर्माण, संसद और विभिन्न कानूनी धाराओं के सृजन पर ध्यान देते हुए सरकार के संगठन पर गहन विचार और उद्योग व कृषि में प्रयोग आने वाली तकनीक में सुधार शामिल हैं। इन परिवर्तनों के परिणाम यूरोप के बाहर भी पुरजोर तरीके से महसूस किये गए।
जैसा कि हमने देखा पाँचवीं सदी में पश्चिम में रोमन साम्राज्य विघटित हो गया था। पश्चिमी और मध्य यूरोप में रोमन साम्राज्य के अवशेषों ने धीरे-धीरे अपने को उन कबीलों की प्रशासनिक आवश्यकताओं और अपेक्षाओं के अनुसार ढाल लिया था, जिन्होंने वहाँ पर राज्य स्थापित कर लिए थे पूर्वी यूरोप, पश्चिमी एशिया एवं उत्तरी अफ्रीका की तुलना में पश्चिमी यूरोप में नगरीय केंद्र छोटे थे।
बाइकिंग स्कैंडिनेविया (डेनमार्क, नार्वे, स्वीडन, आइसलैंड) के वे लोग जो 8वीं-11 वीं शताब्दी नौवीं सदी तक, पश्चिमी और दक्षिणी यूरोप के वाणिज्यिक और शहरी केन्द्र एक्स, लंदन, के बीच उत्तर पश्चिमी रोम व सिवना यद्यपि छोटे थे तथापि उनका महत्व कम नहीं था। नौवीं से ग्यारहवीं सदी के मध्य
यूरोप के क्षेत्रों पर पश्चिमी यूरोप के ग्रामीण क्षेत्रों में कई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। चर्च व शाही शासन ने वहाँ के आक्रमण करने के बाद कबीलों के प्रचलित नियमों और रोमन संस्थाओं में सामंजस्य स्थापित करने में मदद की। इसका वहाँ बस गए। इनमें से सबसे अच्छा उदाहरण पश्चिमी और मध्य यूरोप में नौवीं सदी के प्रारंभ में शालमन का साम्राज्य अधिकांश लोग समुद्री था। इसके शीघ्र पतन के पश्चात भी हंगरीवासियों व वाइकिंग लोगों के भयंकर आक्रमणों के दस्यु और व्यापारी थे।
बावजूद ये नगरीय केंद्र व व्यापार तंत्र बने रहे।
2022-23
बदलती परंपराएँ 125
इन सभी परिवर्तनों की अंतक्रियाओं के फलस्वरूप 'सामंती व्यवस्था अस्तित्व में आई। सामंतवाद की पहचान थी दुर्गा व मेनर भवन के इर्द-गिर्द कृषि उत्पादन यह भूमि मेनर के लॉटों की थी जिस पर कृषक (कृषिदास) कार्य करते थे। ये बफादार होने के साथ माल और सेवा प्रदान करने के प्रति वचनबद्ध होते थे। ये लॉर्ड, बड़े लाँडों के, जो राजा के सामंत (Vassal) होते थे, के प्रति वचनबद्ध थे। कैथलिक चर्च (जिसका केंद्र बिंदु पोप और उनको व्यवस्था थी) सामंतवाद को समर्थन देता था और उनके पास अपनी भूमि भी थी। ऐसे संसार में जहाँ पर जीवन की अनिश्चितताएँ औषधियों का अल्प ज्ञान और निम्न जीवन प्रत्याशा आम बात थी, चर्च ने लोगों को व्यवहार का ऐसा तरीका सिखाया जिससे मृत्यु के बाद का जीवन सहनीय बन सके। सठों का निर्माण हुआ जहाँ पर धर्म में आस्था रखने वाले लोग अपने को कैथलिक चर्चवासियों के निर्देशानुसार सेवा में लगाते थे। साथ ही चर्च स्पेन से बाइजेटियम तक के मुस्लिम राज्यों में फैले विद्वत्ता तंत्र का भाग थे। इसके अलावा वे यूरोप के अधीनस्थ राजाओं, पूर्वी भूमध्यसागर तथा सुदूर क्षेत्रों को प्रचुर मात्रा में धन-संपदा उपलब्ध कराते थे।
वेनिस और जिनेवा के भूमध्यसागरीय उद्यमियों से प्रेरित होकर (बारहवीं सदी से) सामंती व्यवस्था पर वाणिज्य और नगरों का प्रभाव बढ़ता व बदलता गया। इन उद्यमियों के जहाना मुस्लिम राज्यों एवं पूर्व में बचे हुए रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार करते रहे। इन क्षेत्रों की सम्पत्ति के लोभ में तथा ईसा के जीवन से जुड़े 'पवित्र स्थलों' को मुसलमानों से आजाद कराने की भावना से प्रेरित होकर यूरोपीय राजाओं ने 'धर्मयुद्ध' के दौरान भूमध्यसागर के पार के स्थानों से संबंध महबूत किए। यूरोप के आंतरिक व्यापार में सुधार हुआ (जो मेला और बाल्टिक समुद्र तथा उत्तरी सागर के बंदरगाहों पर केंद्रित था और बढ़ती हुई जनसंख्या द्वारा प्रेरित था)। Shed
वाणिज्य विस्तार के ये अवसर जीवन के मूल्य के प्रति बदलते हुए रवैये से मेल खाते थे। इस्लामी कला और साहित्य में मानव और अन्य प्राणियों के प्रति प्रचुरता से दिखाई पड़ने वाला सम्मान और बाइशेटाइन के व्यापार द्वारा यूरोप में आने वाली यूनानी कला और विचारों ने यूरोप को संसार देखने का एक नया नजरिया प्रदान किया। चौदहवीं सदी से (जिसे पुनर्जागरण कहा जाता है) विशेष रूप से उत्तरी इटली के नगरों में रईस लोग मृत्योपरांत जीवन की अपेक्षा इस
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