संस्कृतियों का टकराव
इस अध्याय में पंद्रहवा से शाब्दियों के दौरान यूरोप और उत्तरी तथा दक्षिण अमरीका के मूल निवासियों के बीच हुए संघर्ष के कुछ पहलुओं पर विचार किया जाएगा। इस अवधि में यूरोपवासियों ने ऐसे देशों के व्यापारिक भागों की खोज के लिए अज्ञात महासागरों में साहसपूर्ण अभियान किये जहाँ से वे चाँदी और मसाले प्राप्त कर सकते थे। इस काम को सर्वप्रथम स्पेन और पुर्तगाल के निवासियों ने शुरू किया। उन्होंने पोप से उन प्रदेशों पर शासन करने का अनन्य अधिकार प्राप्त कर लिया जिन्हें वे भविष्य में खोजेंगे। स्पेन के शासकों के तत्वावधान में इटली निवासी क्रिस्टोफर कोलंबस 1492 में पूर्व की और यात्रा करते-करते, जिन प्रदेशों में पहुंचा उन्हें उसने इंडीज' (भारत और भारत के पूर्व में स्थित देश, जिनके बारे में उसनेमाको पोलो Marco Fola के में परखा था समझा
बाद में हुई खोजों से पता चला कि 'नयी दुनिया' के 'इंडियन' वास्तव में भारतीय नहीं बल्कि अलग संस्कृतियों के लोग थे और वे जहाँ रहते थे वह एशिया का हिस्सा नहीं था। उस समय उत्तरी दक्षिण अमरीका में दो तरह की संस्कृतियों के लोग रहते थे- एक और कैरीबियन क्षेत्र तथा प्राजील में छोटी निर्वाह अर्थव्यवस्थाएं (subsistence econom दूसरी ओर विकसित खेती और खनन पर आधारित शक्तिशाली व्यवस्थाएँ और मध्य अमरीका के एमटेक और माया समुदाय और पेस के इंका समुदाय
के समान यहाँ भव्य वास्तुकला थी दक्षिण अमरीका की खोज और बाद में बाहरी लोगों का वहाँ बस जाना यहाँ के मूल निवासियों और उनकी संस्कृतियों के लिए विनाशकारी साबित हुआ। इसी से दास व्यापार की शुरुआत हो गई जिसके अंतर्गत यूरोपकी अफ्रीका से गुलाम पकड़कर या खरीदकर उत्तरी तथा दक्षिणी अमरीका की खानों भागों में काम करने के लिए चने लगे।
अमरीका के पर यूरोप की विजय का एक दुष्परिणाम यह हुआ कि अमरीकी गियों की पांडुलिपियों और स्मारकों को निर्ममतापूर्वक कर दिया गया। इसके बाद उनीस शताब्दी के अंतिम दौर में जाकर ही मानों द्वारा इन संस्कृतियों का अध्ययन प्रारंभ किया गया और उसके बाद पुरातत्वविदों ने इन साओं के भावों की खोज निकाला सन् 1911 में ईकाई शहर माचू पिचू (Machu Picchut फिर खोकी में वाई जहा से लिए गए पता है कि हाँ और शहर अब जंगलों से ढके हुए हैं।
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हम अमरीका के मूल निवासियों तथा यूरोपसयों के बीच हुई मुठभेड़ों के बारे में मूलनिवासियों के पक्ष को तो अधिक नहीं जानते पर यूरोपीय पक्ष का विस्तारपूर्वक जानते हैं। सूर्य अमरीका की यात्राओं पर गए मे अपने साथ रोजनामचा (log-bookd और डायरियाँ रखते थे जिसमें वे अपनी का दैनिक दिखते थे हमें सरकारी अधिकारियों एवं धर्मप्रचारक के चरण से भी इसके बारे में जानकारी मिली है। लेकिन यूरोपवासियों ने अपनी अमरीका की खोज के बारे में जो है और यहाँ के देशों के जो इतिहास लिखे है उनमें यूरोपीयों के बारे में ही अधिक और स्थानीय लोगों के बारे में बहुत कम या न के बराबर भी लिखा गया है।
2022-23
संस्कृतियों का टकराव
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अनेक जन समुदाय उत्तरी तथा दक्षिणी अमरीका और निकटवर्ती द्वीपसमूहों में हजारों वर्षों से रहते आए थे और एशिया तथा दक्षिणी सागर के द्वीपों (South Sea Islands) से जाकर लोग वहाँ बसते रहे थे। दक्षिणी अमरीका घने जंगलों और पहाड़ों से ढका हुआ था आज भी उसके अनेक भाग जंगलों से ढके हैं) और दुनिया की सबसे बड़ी नदी अमेजन (Amazon) मीलों तक वहाँ के घने जंगली इलाकों से होकर बहती है। मध्य अमरीका में, मैक्सिको में समुद्रतट के आसपास के क्षेत्र और मैदानी इलाके घने बसे हुए थे, जबकि अन्यत्र सघन वनों वाले क्षेत्रों में गाँव दूर-दूर स्थित थे।
कैरीबियन द्वीपसमूह और ब्राज़ील के जन-२ -समुदाय
अरावाकी लुकायो (Arawakian Laucayos) समुदाय के लोग कैरीबियन सागर में स्थित छोटे-छोटे सैकड़ों द्वीपसमूहों (जिन्हें आज बहामा (Bahamas) कहा जाता है) और बृहत्तर ऍटिलीज | Greater Antilles) में रहते थे। कैरिव (Caribs) नाम के एक खूंखार कबीले ने उन्हें लघु एंटिलीज (Lesser Antilies) प्रदेश से खदेड़ दिया था। इनके विपरीत, अरावाक लोग ऐसे थे, जो लड़ने की बजाय बातचीत से झगड़ा निपटाना अधिक पसंद करते थे। वे कुशल नौका-निर्माता थे (वे पेड़ के खोखले तनों से अपनी डोंगियाँ बनाते थे) और डोंगियों में बैठकर खुले समुद्र में यात्रा करते थे। वे खेती, शिकार और मछली पकड़कर अपना जीवन निर्वाह करते थे। खेती में वे मक्का, मीठे आलू और अन्य किस्म के कंद-मूल और कसावा उगाते थे। hed
अरावाक संस्कृति के लोगों का मुख्य सांस्कृतिक मूल्याधार यह था कि वे सब एक साथ मिलकर खाद्य उत्पादन करें और समुदाय के प्रत्येक सदस्य को भोजन प्राप्त हो। वे अपने वंश के बुजुगों के अधीन संगठित रहते थे। उनमें बहुविवाह प्रथा प्रचलित थी। वे जीववादी (Animists) थे। अन्य अनेक समाजों की तरह अरावाक समाज में भी शमन लोग (Shamans) कष्ट निवारको और इहलोक तथा परलोक के बीच मध्यस्थों के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते थे।
जीववादियों का विश्वास है कि आज के वैज्ञानिक जिन वस्तुओं को निर्जीव मानते हैं उनमें भी जीवन या आत्मा हो सकती है।
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